समाज का हित इस बात में है की सम्पत्ति का अंतरण बिना किसी बाधा के निरंतर होता रहे । ऐसा विधि का नियम है की संपत्ति का अंतरण होना एक नियम है जबकि अंतरण न होना एक अपवाद है । यही रीज़न है की संपत्ति अंतरण अधिनियम 1882 की धारा 10 के अंतर्गत अंतरण पर रोक लगाने वाली शर्तो को शून्य करार दिया गया है । धारा 10 इस लोकनीति के सिद्धान्त पर आधारित है कि “सम्पत्ति का स्वच्छन्द एवं स्वतंत्र संचार होना चाहिए।” के० मुनीस्वामी बनाम के० वैंकटस्वामी, ए० आई० आर० 2001 कर्नाटक 247.
सेक्शन 8 में अंतरण के प्रभाव के बारे में बताया गया जिसमे कहा गया है की – 8. अन्तरण का प्रभाव – जब तक कि कोई भिन्न आशय अभिव्यक्त न हो या आवश्यक रूप से विवक्षित न हो, सम्पत्ति का अन्तरण अन्तरिती को तत्काल ही सम्पत्ति में के और उसकी विधिक प्रसंगतियों में के उस समस्त हित का संक्रामण कर देता है जिनका संक्रामण करने के लिए अन्तरक तब समर्थ हो-
.Section 10 अन्य संक्रमण अवरुद्ध करने वाली शर्त- इस प्रकार है -जहाँ कि सम्पत्ति ऐसी शर्त या मर्यादा के अध्यधीन अन्तरित की जाती है, जो अन्तरिती या उसके अधीन दावा करने वाले व्यक्ति को सम्पत्ति में अपने हित को अलग करने या व्ययनित करने से आत्यन्तिकतः अवरुद्ध करती है, वहाँ ऐसी शर्त या मर्यादा शून्य है, सिवाय ऐसे पट्टे की दशा के जिसमें कि वह शर्त पट्टाकर्त्ता या उसके अधीन दावेदारों के फायदे के लिए हो, परन्तु सम्पत्ति किसी स्त्री को (जो हिन्दू, मुसलमान या बौद्ध न हो) या उसके फायदे के लिए इस प्रकार अन्तरित की जा सकेगी कि उसे अपनी विवाहित स्थिति के दौरान उस सम्पत्ति को या उसमें के अपने लाभप्रद हित को अन्तरित या भारित करने की शक्ति न होगी ।
धारा 10 के आवश्यक तत्त्व- (1) सम्पत्ति का अंतरण होना आवश्यक
(2) अंतरण पर लगाई गई शर्त अंतरण को पूर्ण रूप से रोकती हो जैसे-
(i) किसी व्यक्ति विशेष या वर्ग विशेष को अंतरण का अधिकार देने वाली शर्त (ii) अवधि द्वारा अवरोधित शर्त (iii) अंतरण के ढंग पर रोक
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-उपरोक्त अन्तरण के आधार पर अंतरण की निम्नलिखित तीन श्रेणियाँ हैं-
(3) जहाँ शर्त भी शून्य अंतरण भी शून्य ।
(2) जहाँ शर्त शून्य अंतरण वैध,
(1) जहाँ शर्त भी वैध अंतरण भी वैध,
शर्तयुक्त अन्तरण के प्रकार — शर्तयुक्त अन्तरण निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है.1) पूर्ववर्ती शर्त
2) पश्चात्वर्ती शर्त (3) साम्पाश्विक शर्तें ।
पूर्ववर्ती शर्त संपत्ति के अंतरण के पहले लागू होती है जबकि पश्चात्वर्ती शर्त संपत्ति के अंतरण के बाद लागू होती है । अधिनियम की धारा 10,11,12,17 के अंतर्गत पश्चात्वर्ती शर्त को शून्य घोषित किया गया है ।
Example-
जहाँ कि शर्त अन्तरिती को अन्तरणकर्ता के परिवार से बाहर सम्पत्ति अन्तरित करने से प्रतिबन्धित करती थी वहाँ वह शर्त वैध एवं प्रवर्तनीय थी । मोहम्मद रजा बनाम ए० वी० बीबी, ए० आई० आर० 1932 पी० सी० 158.
अपवाद – पूर्ण अवरोध निम्नलिखित दशाओं में मान्य है-
(1) यदि कोई संव्यवहार अंतरण की कोटि में न आता हो;
2- पट्टा [105-117]3- विवाहित स्त्रियाँ – पारसी , यहूदी , ईसाई
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