पर्यावरण और संविधान

पर्यावरण और संविधान- भारतीय संविधान भारत की एक सर्वोच्च विधि है , किन्तु हमारे मूल संविधान में पर्यावरण के संरछण से सम्बंधित कोई विशेष उपबंध नहीं किये गए थे । केवल अनुच्छेद 47 ,48 के अंतर्गत पर्यावरण संरछण के सम्बन्ध में अप्रत्यछ रूप से उपबंध किया गया है ।
अनुच्छेद 47 इस प्रकार है – पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य. – राज्य, अपने लोगों के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने और लोक के सुधार को अपने प्राथमिक कर्तव्यों में मानेगा और राज्य, विशिष्टतया, मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकर औषधियों के, औषधीय प्रयोजनों से भिन्न, उपभोग का प्रतिषेध करने का प्रयास करेगा ।भारतीय संविधान एक लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा पर आधारित है । राज्य का यह दायित्व है की वह अपने नागरिको को स्वस्थ रखने के प्रत्येक उपाय करे क्योकि जब तक पर्यावरण सुद्ध नहीं होगा नागरिक स्वस्थ नहीं रह सकते है । अनुच्छेद 47 उक्त मन्तब्य से ही रखा गया है ।

अनुच्छेद 48 कृषि और पशुपालन के संगठन से सम्बंधित है जिसमे यह उपबंध किया गया है की – राज्य, कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करने का प्रयास करेगा और विशिष्टतया गायों और बछड़ों तथा अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्लों के परिरक्षण और सुधार के लिए और उनके वध का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठाएगा । यह अनुच्छेद भी पर्यावरण के संरछण से अप्रत्यछ रूप से सम्बंधित है ।

1972 में पर्यावरण के संरछण को लेकर स्टॉकहोम में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ जिसमे पहली बार बैश्विक अस्तर पर पर्यावरण संरछण के सम्बन्ध में विश्व के अनेक राष्ट्रों द्वारा विचार – विमर्श किया गया ।

 48- क. पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा. — राज्य, देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा ।]  

 51A(g) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे; 

21. प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण – किसी व्यक्ति को, उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं । जाएगा। 

253. अंतरराष्ट्रीय करारों को प्रभावी करने के लिए विधान. – इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, संसद् को किसी अन्य देश या देशों के साथ की गई किसी संधि, करार या अभिसमय अथवा किसी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, संगम या अन्य निकाय में किए गए किसी विनिश्चय के कार्यान्वयन के लिए भारत के संपूर्ण राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के लिए कोई विधि बनाने की शक्ति है ।   

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