अनुच्छेद 21A,Right to education

परिचय –

अनुच्छेद 21A हमारे मूल सविधान में नहीं था बल्कि इसे भारतीय संसद ने छियासीवे संविधान संसोधन अधिनियम 2002 द्वारा भारतीय संविधान के भाग 3 में जोड़ा जिसके द्वारा 6 से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे को शिछा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार प्रदान किया।

इस संसोधन के पूर्व भी अनुच्छेद 45 के अंतर्गत 6 से 14 वर्ष तक के बच्चो के निःशुल्क शिछा के बारे में उपबंध था। किन्तु अनुच्छेद 45 के अंतर्गत राज्य को एक सामान्य निर्देश था की वह प्रयास करेगा। किन्तु, यदि सरकार के द्वारा ऐसा प्रयास न किया जाता तो कोई भी नागरिक इसकी शिकायत कोर्ट से नहीं कर सकता था, क्योकि अनुच्छेद 45 भाग 4 के अंतर्गत आता है और भारतीय संविधान का भाग 4 नीति निर्देशक सिद्धांतों से सम्बंधित है और नीति निर्देशक सिद्धांतों को कोर्ट के माध्यम से लागू नहीं करवाया जा सकता ।

आजादी के पूर्व प्रयास –

गोखले विधेयक 1911- दरसल जब हमारा देश अंग्रेजो का गुलाम था उसी समय से अनेक भारतीय बुद्धजीवियों ने निःशुल्क एवं अनिवार्य शिछा के लिए प्रयास करना प्रारम्भ कर दिया था । इस दिशा में पहला एवं प्रभावी प्रयास बड़ौदा के राजा शिवाजी राव गायकवाड़ ने 1906 में किया । उन्होंने पहली बार अपनी रियासत में प्राथमिक शिछा को निःशुल्क एवं अनिवार्य बनाया । शिवाजी राव से प्रेरित होकर गोखले ने 16 मार्च 1911 को को विधान परिषद् में एक विधेयक प्रस्तुत किया जिसमे उन्होंने प्राथमिक शिछा को निःशुल्क एवं अनिवार्य करने की वकालत की । यद्यपि यह विधेयक पास न हो सका किन्तु इसने लोगो का ध्यान इस तरफ आकर्षित जरूर किया । वर्धा योजना

1937 में गाँधी जी ने वर्धा शिछा योजना के द्वारा प्राथमिक शिछा की महत्ता पर बल देते हुए कहा की 7 वर्ष तक के बच्चो को अनिवार्य रूप से निःशुल्क शिछा दी जनि चाहिए।

संविधान सभा में बहस – अंग्रेजी शासन काल में तो शिछा निःशुल्क नहीं हो पायी । परन्तु जब हमारा संविधान बनने लगा तब प्राथमिक शिछा के निःशुल्क एवं अनिवार्य करने की बात संविधान सभा में उठी किन्तु संविधान निर्माताओं ने यह महसूस किया की अभी राज्य की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है की वह इसका खर्च वहन कर सके अंत में संविधान सभा ने बीच का रास्ता निकालते हुए अनुच्छेद 45 के अंतर्गत इससे सम्बंधित नियम उपंबंधित कर दिया की यह सरकार के ऊपर होगा की वह निःशुल्क शिछा के लिए प्रयास करे किन्तु राज्य पर बाध्यकारी नहीं होगा ।

आजादी के बाद प्रयास

मोहनी जैन बनाम भारत संघ – देश आजाद होने के कई दशक बीत जाने के पश्चात भी न तो केंद्र सरकार ने न ही राज्य सरकारों ने इस दिशा में कोई कदम उठाया तब जाकर के सर्वोच्च न्यायलय ने 1992 में मोहनी जैन बनाम भारत संघ के मामले में कहा की निःशुल्क एवं अनिवार्य शिछा प्राप्त करने का अधिकार प्रत्येक नागरिक को है वह चाहे जिस उम्र का हो ।

उन्नी कृष्णन बनाम भारत संघ

मोहनी जैन के निर्णय के बाद सरकार के सामने बहुत बड़ी चुनौती आ गयी की वह कैसे सभी नागरिको को निःशुल्क शिछा प्रदान करे क्योकि सरकार की आर्थिक छमता के बहार यह कार्य था । सरकार की उक्त समस्या को ध्यान में रखते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने उन्नी कृष्णन बनाम भारत संघ 1993 के मामले में कहा की मात्र 6 से 14 साल तक के बच्चो को राज्य निःशुल्क शिछा प्रदान करने के लिए बाध्य है ।

निष्कर्ष – उन्नी कृष्णन के निर्णय को प्रभावी बनाने के लिए संसद ने छियासीहवा संविधान संसोधन किया जिसके द्वारा अनुच्छेद 21A को शामिल किया गया

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